नई व्यवस्था के साथ कई बंदिशें हटीं, सबके लिए खुले जम्मू-कश्मीर के द्वार

नई व्यवस्था के साथ कई बंदिशें हटीं, सबके लिए खुले जम्मू-कश्मीर के द्वार

जम्मू
जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त होने तथा अनुच्छेद 370 खत्म होने के  दो साल के भीतर राज्य में कई बदलाव हुए। बंदिशें हटीं और सभी के लिए जम्मू-कश्मीर के द्वार खोल दिए गए। अब कोई भी यहां उद्योग धंधा लगा सकेगा। कश्मीर का वर्चस्व समाप्त करने के लिए लंबे समय से उठ रही मांग को अमली जामा पहनाते हुए दरबार मूव की व्यवस्था समाप्त कर दी गई। इतना ही नहीं अब बाहरी राज्यों में शादी करने वाली बेटियों और राज्य में शादी करने वाले दामाद को भी डोमिसाइल का हकदार बनाया गया। उन्हें भी यहां अन्य नागरिकों की तरह नौकरी व जमीन में बराबर का मालिकाना हक होगा।

दरअसल राज्य पुनर्गठन अधिनियम के 31 अक्तूबर 2019 से लागू होने के बाद धीरे-धीरे केंद्र सरकार ने बदलावों का दौर शुरू कर   दिया। सबसे पहले कानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार किया। भ्रष्टाचार तथा भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसनी शुरू हुई। जेके बैंक के पूर्व अध्यक्ष नेंगरू समेत कई बड़ी मछलियों को सलाखों के पीछे डाल दिया गया। साथ ही साथ आम लोगों को राहत पहुंचाने के फैसले भी लिए जाने लगे। सात सौ से ज्यादा केंद्रीय कानून यहां लागू कर दिए गए। स्थानीय लोगों के रोजगार तथा जमीन के मालिकाना हक को बरकरार रखने के लिए डोमिसाइल व्यवस्था को लागू कर उनकी शंकाओं का समाधान किया गया। हालांकि, डोमिसाइल नियम के चलते यहां की बेटियों को परेशानी भी झेलनी पड़ रही थी, जिसका समाधान करते हुए बाहरी राज्यों में शादी करने वाली बेटियों तथा दामाद को भी हक मुहैया कराया गया।

पहली बार वन भूमि का अधिकार,  ृउद्योगों से चेहरा बदलने की कवायद
दरबार मूव व्यवस्था पर साल में दो बार 200 करोड़ रुपये का खर्च आता था। रिकॉर्ड को जम्मू या श्रीनगर ले जाने में भारी तामझाम करना पड़ता था, लेकिन अब सारे रिकॉर्ड डिजिटल करते हुए इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया। अब दोनों सचिवालय में ऑनलाइन सभी रिकॉर्ड उपलब्ध हैं। दोनों जगह सामान्य रूप से कामकाज हो रहा है। केवल प्रशासनिक सचिव जम्मू और श्रीनगर रोटेशन पर रह रहे हैं। अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार वन भूमि का अधिकार लोगों को मिला। जंगल किनारे रहने वाले लोगों को जमीन का मालिकाना हक मिला। इससे सभी 20 जिलों में लोगों को लाभ मिला। खासकर गुज्जर बक्करवाल समुदाय के लोगों को उनका हक मिला। देश के अन्य राज्यों में यह अधिकार पहले से लोगों को मिला हुआ था। 

अनुच्छेद 370 की वजह से यहां उद्यमी आने से कतराते थे, लेकिन इससे आजादी के बाद सरकार ने युद्धस्तर पर प्रयास किए। स्थानीय उद्योगों को पुनजीर्वित करने के साथ ही बाहरी निवेश को बढ़ावा देने के लिए 28 हजार करोड़ से अधिक की औद्योगिक विकास योजना लागू की गई। नए औद्योगिक क्षेत्रों की पहचान की गई। निवेश के इच्छुक औद्योगिक घरानों को जमीन तथा अन्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए एकल विंडो सिस्टम की स्थापना की गई। अब उम्मीद है कि जापान, दुबई के साथ ही देश के नामी औद्योगिक घराने भी यहां का रुख करेंगे। उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने अगले पांच साल में छह हजार करोड़ रुपये निवेश का दावा किया है।

धरातल पर दिखने लगा बदलाव, विकास को लगेंगे पंख
जम्मू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रकाश अंथाल का कहना है कि 370 हटने के दूरगामी परिणाम सामने आएंगे। सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। शुरुआत के दो साल में धरातल पर बदलाव दिखने भी लगा है। लोगों की मानसिकता में बदलाव आया है। केंद्रीय कानून लागू होने से भेदभाव समाप्त होंगे। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। विकास को पंख लगेगा। खासकर सरकार की नई नीति से उद्योग को बढ़ावा मिलेगा। इससे न केवल रोजगार के अवसर युवाओं के लिए सृजित होंगे बल्कि अब तक देश की मुख्यधारा से अलग-थलग पड़ा जम्मू-कश्मीर भी अन्य राज्यों से बराबरी की होड़ में शामिल होगा।

राजकाज की भाषा के रूप में डोगरी-कश्मीरी-हिंदी को मान्यता
जम्मू-कश्मीर में प्रशासन की आम लोगों तक पहुंच बनाने और स्थानीय लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए सरकार ने अंग्रेजी व उर्दू के साथ ही डोगरी, कश्मीरी व हिंदी को कामकाज की भाषा के रूप में मान्यता दी। अब प्रशासन इन पांचों भाषाओं को सरकारी भाषा के रूप में इस्तेमाल कर सकता है। पहले यहां केवल अंग्रेजी व उर्दू ही प्रचलित थी। विशेषज्ञों का कहना है कि इन तीन भाषाओं को मान्यता देने से सरकार लोगों के और करीब पहुंचा है। 

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